Wednesday, 11 May 2022

KAIFI AAZMI.. GHAZAL... JO WO MIRE NA RAHE, MEIN HI KAB KISI KA RAHA........

जो वो मिरे न रहे, मैं ही कब किसी का रहा।
बिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िन्दगी का रहा। 

If she was not mine, I was of no one. 
Parting with her, style  of life was undone.

लबों से उड़ गया जुगनू की तरह नाम उन का।
सहारा अब कोई घर में न रौशनी का रहा। 
Her name like glow-worm, flew from lips. 
For light in my home was support of none. 

गुज़रने को तो हज़ारों ही क़ाफ़िले गुज़रे। 
ज़मीं पे नक़्श-ए-क़दम पर किसी किसी का रहा।

A thousand caravans passed by the way. 
Footprints of a few were there after run. . 

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