Saturday, 11 June 2022

AMIIR QAZALBAASH...20....... COUPLETS

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा 
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा 

Result of my frenzy will emerge 
From this sea, light will emerge. 

लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं 
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है

People just pray to die in this state. 
I 've promised to live in that state. 

इक परिंदा अभी उड़ान में है 
तीर हर शख़्स की कमान में है 

A bird is still in aerial route. 
Each man has arrow to shoot. 

यकुम जनवरी है नया साल है 
दिसम्बर में पूछूँगा क्या हाल है 

It's first January and a new year. 
In December, 'll ask your state dear. 
 
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ 
हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा 

His is city, he is plaintiff and judge. 
I was sure, I ' ll be found guilty by judge. 

तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो 
किस किस को बताओगे कि घर क्यूँ नहीं जाते 

You have stood silently while on  way. 
Why don't go home, whom ' d you say? 

सुना है अब भी मिरे हाथ की लकीरों में 
नजूमियों को मुक़द्दर दिखाई देता है

In lines of my hand, it's still said.
Astrologers see destiny instead. 

 मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं 
जो मुझ में ढूँड रहे हैं बुराइयाँ अपनी

Near me, such people also dwell. 
Who search their fault in my spell. 

 मुझ से बच बच के चली है दुनिया 
मेरे नज़दीक ख़ुदा हो जैसे

World has bypassed me as such. 
As if Almighty is within my touch. 
आज की रात भी गुज़री है मिरी कल की तरह 

हाथ आए न सितारे तिरे आँचल की तरह 
 
  
 ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता 

तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है


यार क्या ज़िंदगी है सूरज की 

सुब्ह से शाम तक जला करना

क्या गुज़रती है मिरे बाद उस पर 

आज मैं उस से बिछड़ कर देखूँ

मिरे घर में तो कोई भी नहीं है 

ख़ुदा जाने मैं किस से डर रहा हूँ

मैं ने क्यूँ तर्क-ए-तअल्लुक़ की जसारत की है 

तुम अगर ग़ौर करोगे तो पशीमाँ होगे

न जाने कैसा मसीहा था चाहता क्या था 

तमाम शहर को बीमार देख कर ख़ुश था

जहाँ जहाँ भी है नहर-ए-फ़ुरात का इम्काँ 

वहीं यज़ीद का लश्कर दिखाई देता है

ज़रा बदलूंगा इस बे-मंज़री को 

फिर उस के बाद मर जाऊँगा मैं भी

अदा हुआ है जो इक लफ़्ज़ बे-असास न हो 

मिरा ख़ुदा कहीं मेरी तरह उदास न हो

सुकूत-ए-शब में दर-ए-दिल पे एक दस्तक थी 

बिखर गई तिरी यादों की कहकशाँ मुझ से

मेरे उस के दरमियाँ हाइल कई कोहसार हैं 

मुझ तक आते-आते बादल तिश्ना-लब हो जाएगा

No comments:

Post a Comment