Friday, 24 June 2022

हरि! थे थामो मन की डोर।... रवि मौन

हरि ! थे थामो मन की डोर।

वृंदावन के रास-रचैया ! नटवर, नंदकिशोर।
हे गिरिधर बनवारी! मेरो चित भटकै चहुँ ओर।
हरि ! थे थामो मन की डोर।

मेरी भी सुध लीजो हे हरि ! राधा का चितचोर।
दीनानाथ, दयानिधि, माधव, भक्तन का सिरमौर।
हरि ! थे थामो मन की डोर।

हे गौ-पालक, जसुदा-नंदन, बृज का माखन-चोर।
विषय-ग्राह खींच्याँ ले स्वामी ! गहरा जल की ओर।

हरि ! थे थामो मन की डोर। 

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