मंज़िल मिरे क़दम के निशाँ ढूँढती रही।
कौन जाने ज़िन्दगी ये साथ कब तक दे मेरा ?
देखते ही देखते इक दिन फ़ना हो जाऊँगा।
मंज़िलें कितनी भी ऊँची क्यूँ न हों?
रास्ते पाओं के नीचे पाएँगे।
अक्सर उन्हीं दियों से जले हैं हमारे हाथ ।
जिनको हवा बुझा न दे, कोशिश में रहे हम।।
हाथ थामो जो किसी का, तो कुछ इस तरह अगर।
कभी छूटे, तो लकीरों में असर रह जाए।।
शान्त हुआ तूफ़ान, मगर मेरे आँसू संचित करने को।
सागर की लहरों पर चढ़ कर, कितने सीप किनारे आए !
ये कचरा तुम ने फेंका है, तुम्हें कचरा लगेगा ये।
मगर उसको तो इस ढेरी में, इक रोटी ही दिखती है।
रेत पर पाँव के निशानों को, आने वाली लहर मिटा देंगी।
और फिर कौन कह सकेगा यह, मैं भी इस रास्ते से गुज़रा हूँ ?
अगर ये जान लेते चल रहा है क्या ख़यालों में
तो शायद मुद्दतों तक मुझ से वो बातें नहीं करते
भाव की अभिव्यक्ति है पहचान कवि की।
भाव बिन, साहित्य के अपमान सी है !
खेल का आँगन धरा है, वक्ष माँ का है बिछौना।
गोद में बैठा स्वयं शिशु लग रहा है इक खिलौना।
फूल ख़ुशबू बिखरते हर सू और काँटे कभी नहीं खिलते।
फिर भी काँटों की मेहरबानी है, वर्ना ये फूल याँ नहीं मिलते ।
जब तक जगे हैं, दिल में, साँसों में छा गए हैं।
जब नींद आ गई तो, ख़्वाबों में आ गए हैं।
शिकायतें तो महज़ दूरियों की वजह से हैं।
जो लब मिले तो सिलेंगे, गिले कहाँ होंगे?
कर सकने की लगन अगर हो, अक़्ल और सच्चाई हो।
जिसे जवानी भर न पाए, ऐसी कोई उड़ान नहीं।
दीद की भीख भी नहीं देते।
हुस्न वाले ग़रीब होते हैं।
P
जो किसी डाल पर नहीं बैठे।
ऐसे पंछी अजीब होते हैं।
दिन गुज़रता गया, रात ढलती रही।
ज़िन्दगी मोम बन कर पिघलती रही।
याद भी पास से गुज़रे तो मो'अत्तर हो जाए !
कैसे बतलाऊँ कि किस शख़्स का ये चेहरा है?
अर्थ-प्रधान जगत है, कौन सुनेगा तेरी?
इसीलिए ऐ' मौन'! मौन तुम भी हो जाओ।
नया साल है, नई उमंगें, नया जोश है।
क्या खोया है, क्या पाया है, किसे होश है?
मेरा अपना था कभी, ग़ैर हुआ है जो आज।
दिल दुखाता है मगर, उसका परेशाँ होना।
आजकल मैं उदास रहता हूँ।
तुम को भी आज, कल न आए कहीं!
कौन साथ देता है जग में, सब कहने की बातें हैं।
जीवन-संध्या आते - आते, जीवन-साथी चला गया।
सीने से लगाया यादों को, तो नींद रूठ कर यूँ बोली।
मैं पास तुम्हारे क्यों आऊँ, जब तुम रक़ीब के साथ रहो?
जलती चिता को देख कर, आया मुझे ख़याल।
ता-उम्र मैं जला किया, होने को सिर्फ ख़ाक !
चश्म-ए - तर बैठे हैं हम तुम रू-ब-रू।
हाय वो आँसू ! जो यूँ ही बह गए।
हाँ, मैंने ये वचन दिया था, जनम - जनम पकड़ूँगा हाथ।
पिछले पहर, रक़ीब की आँखें भीगी देखीं, क्या करता ?
सर पर बहू के हाथ रख, बोली दुलार से।
बिटिया का ही आँचल अभी गीला नहीं हुआ !
जिस्म से रूह को छू लेने की कोशिश की है।
क़ाबिल-ए-रश्क है, काँटों का पशेमाँ होना !
जगमग जगमग करती गलियाँ, घर घर में ख़ुशियाँ छाई हैं।
मन का अँधियारा जो हर ले, ऐसा कोई दीप जला दे।
मुस्कुरा कर कहो जिस जगह जान-ए-मन, सर वहीं पर हमारा ये झुक जाएगा।
आप मेरे हैं, कहिए न ये ग़ैर से, सिलसिला उस की साँसों का चुक जाएगा।
दिल तो बेताब था, ख़ुद ही आता वहाँ,
माँग कर क्यूँ पशेमाँ किया आप ने।
हुस्न को दे सकेगा भला इश्क़ क्या,
मुँह सवाली का देखा तो झुक जाएगा।
शुक्रिया उन सबका, जिनने हाथ छोड़ा था मेरा।
मैं निपट लूँगा अकेले, ये भरोसा था उन्हें।
बहुत परेशाँ था मैं सब की कर कर के परवाह ।
चैन मिला है उस दिन से जब हो गया बेपरवाह।
हृदय से जो दे सकोगे हाथ से होता नहीं।
मौन से जो कह सकूँगा शब्द से होता नहीं।
तुम साथ चल रहे हो या चल रहे अकेले।
हर रास्ते पे तुम को अपने लिए है चलना।
तुम्हारे हुस्न की मैं और क्या करूँ तारीफ़।
जहाँ में कोई शै ऐसी नहीं, हो तुम जैसी।
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