Thursday, 2 June 2022

REKHTA TODAY'S 5 COUPLETS

शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिरियाँ रही।
रात बादल इस तरह आए कि मैं तो डर गया।..... मुनीर नियाज़ी.....

Deep darkness kept crying in city street ways. 
 I feared, clouds crowded last night many ways.

ऐ शम'अ-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही दे।
मैं तेरे साथ  साथ  रहा घर नहीं गया। 
..... अज़ीम हैदर सैयद.....

O parting lover's lamp ! You vouch for me.
I didn't know go home, remained with thee. 

ये तेरी आरज़ू में बढ़ी वुस' अत-ए-नज़र।
दुनिया है सब मिरी निगह-ए-इंतिज़ार में।
..... अज़ीज़ लखनवी...

Expanse of  vision, grew in your desire.
Under my watch, is the world, entire.

मेरा हर शे' र हक़ीक़त की है कि ज़िंदा तस्वीर।
मेरे अश'आर में है किस्सा नहीं लिक्खा  मैंने। 
..... अनवर जलालपुरी..... 

Each of my couplets is living picture of facts. 
In my couplets, I didn't pen tales and tacts. 

मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है। 
कि ये आँसू बहाने का भी तो मौका नहीं  देते।..... वसीम बरेलवी..... 

For constant accidents, I have only this to complain. 
These do not give a chance for the eyes to drain. 





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