Monday, 11 July 2022

रवि मौन...देख चतुर्भुज रूप को देवकी औ' वसुदेव.....

देख चतुर्भुज रूप को, देवकी औ' वसुदेव। करते कारागार में स्तुति, नैनन सुख लेव।। 
मुझ सा सुत माँगा कभी, करी तपस्या घोर। 
यहीं आ गया मैं स्वयं, बोले प्रभु चितचोर।।

 बेड़ी सारी खुल गईं, औ' कारा के द्वार। 
लिए सूप में वसु चले, जग के पालनहार।। 

देखा गहरी नींद में, सोए रक्षक-वृंद। 
गोकुल तक लेकर चले, प्रमुदित श्री गोविंद।। 

पैरों को छूकर हुई, यमुना नदी निहाल। 
खेलेंगे आकर यहाँ, सखा संग गोपाल।। 

जसुदा औ' नंदलाल की, कन्या गोद उठाय। 
वहाँ सुलाया कृष्ण को, कारा पहुँचे जाय।। 

जन्मी है संतान फिर, बोले पहरेदार। 
कंस चला आया, इसे मैं डालूंगा मार।। 

भैया यह तो है सुता, मत लो हत्या पाप। 
हँस कर बोला कंस यह, समझूँगा मैं आप।। 

इसे शिला पर पटक कर, भेजूँ यम के द्वार। 
देवी बोलीं, पल रहा तेरा मारनहार।। 

छुटीं कंस के हाथ से, हो गईं अंतर्धान। 
जसुमति को सुख देन हितु, रोए श्री भगवान।। 

वध अबोध शिशु के किए, देवी देतीं मार। 
चरण पकड़ कर बच गया, कंस धरा का भार।। 

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