एक एक दाणा नैं चाखै, खाटा दूर बगावै।
प्रेम सुधा पी हुई बावरी, ईंनैं कुण समझावै
अपणै हाथाँ बेर खुवारी, मन ही मन हरसावै।
बर बर आँख्याँ खोलै मूँदै, दरसन को सुख पावै।
भक्ताँ कै आधीन रामजी, बड़ा प्रेम सैं खावै।
जात कूण पूछै शबरी की, या रघुबर नैं भावै।
शबरी झूठा बेर खुआवै ।
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