Saturday, 2 July 2022

FAIZ AHMAD FAIZ.. GHAZAL.. TIRI UMEED TIRA INTEZAAR JAB SE HAI.....

तिरी उम्मीद तिरा इंतिज़ार जब से है 
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है 
Since when I have  waited for you, had hope, alright. Neither night complains about day nor day about night
किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म 
गिला है जो भी किसी से तिरे सबब से है 

हुआ है जब से दिल-ए-ना-सुबूर बे-क़ाबू 
कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है 

अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले 
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है 

कहाँ गए शब-ए-फ़ुर्क़त के जागने वाले 
सितारा-ए-सहरी हम-कलाम कब से है 


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