Monday, 11 July 2022

KHUMAAR BARAHBANKVI.. GHAZAL.. AKELE HAIN WO AUR JHUNJHLAA RAHE HAIN...

अकेले हैं वो और झुँझला रहे हैं 

मिरी याद से जंग फ़रमा रहे हैं 

ये कैसी हवा-ए-तरक़्क़ी चली है 

दिए तो दिए दिल बुझे जा रहे हैं 

इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से 

ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं 

बहिश्त-ए-तसव्वुर के जल्वे हैं मैं हूँ 

जुदाई सलामत मज़े आ रहे हैं 

क़यामत के आने में रिंदों को शक था 

जो देखा तो वाइ'ज़ चले आ रहे हैं 

बहारों में भी मय से परहेज़ तौबा 

'ख़ुमार' आप काफ़िर हुए जा रहे हैं

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