ख़्वाब है देखिए, इतना नहीं आसाँ होना।
यूँ ही, बेकार, फ़रिश्तों की न करिए बातें।
ऐसे माहौल में मुश्किल हुआ इंसाँ होना।
दोस्त मेरा था कभी, ग़ैर हुआ है जो अब।
फिर भी दुःख देता है क्यूँ उसका परेशाँ होना ?
जिस्म से रूह को छू लेने की कोशिश की है।
क़ाबिल-ए-रश्क है काँटों का पशेमाँ
होना !
ज़ख़्म पहले भी बहुत खाए हैं तूने ऐ 'मौन'।
हो न आग़ाज़ नया, उन का मेहरबाँ
होना।
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