लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई।..... मुज़फ़्फ़र स्ज़्मी.....
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था।
वो बात उनको बहुत नागवार गुज़री है।
..... फ़ैज़ अहमद फ़ैजृ.....
ये और बात कि आँधी तुम्हारी बस में नहीं।
मगर चिराग़ जलाना तो अख्तियार में है।
अज़हर इनायती.....
तुम इसे शिकवा समझ कर किस लिए उनमें शर्मा गए।
मुद्दतों के बा'द देखा था सो आँसू आ गए।
..... फ़िराक़ गोरखपुरी.....
जब मैं चलूँ तो साया भी अपना न साथ दे।
जब तुम चलो ज़मीन चले आस्माँ नमस्ते चलो।..... जलील मानिकपुरी......
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