'नदीम' काश यही एक काम कर जाऊं
ये दश्त-ए-तर्क-ए-मोहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास
जो इज़्न हो तो तिरी याद से गुज़र जाऊं
मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है
तिरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं
तिरे जमाल का परतव है सब हसीनों पर
कहां कहां तुझे ढूंढ़ूं किधर किधर जाऊं
मैं ज़िंदा था कि तिरा इंतिज़ार ख़त्म न हो
जो तू मिला है तो अब सोचता हूं मर जाऊं
तिरे सिवा कोई शाइस्ता-वफ़ा भी तो हो
मैं तेरे दर से जो उठूं तो किस के घर जाऊं
किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ
किसी कली पे न भूले से पांव धर जाऊं
ये जी में आती है तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में
कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊं
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