देवराज की गद्दी हालै, चिंता सर पै छारी।।
साठ हजार सगर का बेटा, घोड़ा का रखवाला।
ये धरती का बोझ हो रह्या, दुष्ट क्रूर मतवाला।
इंद्रदेव घोड़ा नै लेगा, ढूँढ ढूँढ ये हार्या।
कपिल मुनी नैं चोर कह्यो, तो भस्म कर दिया सारा।।
गंगा नैं धरती पै ल्याणै, करी तपस्या भारी।
भागीरथ की बिनती सुण ली, एक समस्या आरी।।
बिष्णू का चरणाँ सैं निकली, तीन धार मैं चाली।
सुरगाँ सैं लहराती उतरी, शिवजी जट्याँ रमाली।।
आगै आगै चलै भगीरथ, गंगा पीछै चालै। पुरखाँ की ढेरी पै फिरगी, उननैं सुरगाँ घालै।।
अच्छी कविता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मौन साहब
ReplyDelete