झूटी क़सम से आप का ईमान तो गया
दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं एहसान तो गया
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया
क्या आए राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया
देखा है बुत-कदे में जो ऐ शैख़ कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया
Hasya Poetry: गोपालप्रसाद व्यास की कविता- तुम कहती हो कि नहाऊँ मैं!
Kavya Desk काव्य डेस्क
हास्य
Hasya
तुम कहती हो कि नहाऊँ मैं!
क्या मैंने ऐसे पाप किए,
जो इतना कष्ट उठाऊँ मैं?
क्या आत्म-शुद्धि के लिए?
नहीं, मैं वैसे ही हूँ स्वयं शुद्ध,
फिर क्यों इस राशन के युग में,
पानी बेकार बहाऊँ मैं?
ahmad faraz urdu nazm itna sannata ki
इतना सन्नाटा कि जैसे हो सुकूत-ए-सहरा
ऐसी तारीकी कि आँखों ने दुहाई दी है
जाने ज़िंदाँ से उधर कौन से मंज़र होंगे
मुझ को दीवार ही दीवार दिखाई दी है
दूर इक फ़ाख़्ता बोली है बहुत दूर कहीं
पहली आवाज़ मोहब्बत की सुनाई दी ह..
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