Saturday, 27 August 2022

NAASIR KAAZMII.. GHAZAL.. DHOOP NIKLII DIN SUHAANE HO GAYE.....

धूप निकली दिन सुहाने हो गए

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चाँद के सब रंग फीके हो गए

क्या तमाशा है कि बे-अय्याम-ए-गुल
टहनियों के हाथ पीले हो गए

इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए

हम भला चुप रहने वाले थे कहीं
हाँ मगर हालात ऐसे हो गए

अब तो ख़ुश हो जाएँ अरबाब-ए-हवस
जैसे वो थे हम भी वैसे हो गए

हुस्न अब हंगामा-आरा हो तो हो
इश्क़ के दावे तो झूटे हो गए

ऐ सुकूत-ए-शाम-ए-ग़म ये क्या हुआ
क्या वो सब बीमार अच्छे हो गए

दिल को तेरे ग़म ने फिर आवाज़ दी
कब के बिछड़े फिर इकट्ठे हो गए

आओ 'नासिर' हम भी अपने घर चलें
बंद इस घर के दरीचे हो गए 


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