फूल सब मुरझा गए ख़ाली बयाबाँ रह गया
तुम जाते हो क्या जान मिरी जाती है साहिब
ऐ जान-ए-जहाँ आप का जाना नहीं अच्छा
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अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की
उठो न पहलू से ठहरो ज़रा किधर को चले
ध्यान आ गया जो शाम को उस ज़ुल्फ़ का 'रसा'
उलझन में सारी रात हमारी बसर हुई
दौलत-ए-दुनिया न काम आएगी कुछ भी बा'द-ए-मर्ग
है ज़मीं में ख़ाक क़ारूँ का ख़ज़ाना हो गया
नींद आती ही नहीं धड़के की बस आवाज़ से
तंग आया हूँ मैं इस पुर-सोज़ दिल के साज़ से
आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा
ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
रहा जहाँ में सिकंदर न और न जम बाक़ी
छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें
मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई
मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम
हौसला अब दिल का दिल ही में मिरी जाँ रह गया
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