इंद्रदेव शंकित हुए छिन जाएगा राज।
गए शरण में विष्णु की रक्षा कीजे नाथ।
उसके सिर पर रख दिया हरि ने अपना हाथ।
है वह मेरा भक्त पर शरण पड़े तुम आय।
तेरी रक्षा हेतु मैं कोई करूँ उपाय।
कश्यप ऋषि का पुत्र बन लूँगा मैं अवतार
वामन बन कर हरूँगा मैं पृथ्वी का भार।
माँगा हरि ने तीन पग का छोटा सा दान।
शुक्र अड़े, ये विष्णु हैं तू इन को पहचान।
दुगुना फल मिलता अगर करें पात्र को दान।
पात्र अगर हों विष्णु तो, दे दूँगा मैं दान।
हरि बोले संकल्प लो लिए हाथ में नीर।
शुक्र घुसे उस पात्र में जिससे गिरता नीर
तिनका लेकर के किया दूर सभी अवरोध
निकले सुजी आँख ले शुक्र, हो गया बोध।
अब हरि ने अपना किया विस्तृत यों आकार।
माप धरा को एक से गगन दूसरी बार।
कहाँ तीसरा पग धरूँ बोले हरि मुस्काय।
बलि बोले मम शीश पर दीजे इसे जमाय।
हरि बोले पाताल का तुम्हीं संभालो भार।
मैं प्रसन्न तुम पर, करूँ इच्छा हर साकार।
बलि बोले पाताल का द्वार एक हर छोर।
दर्शन पाऊँआपके मैं निकलूँ जिस ओर।
हरि प्रहरी बन कर रहे बलि राजा के द्वार
लक्ष्मी विचलित हो गईं ऐसा करें विचार।
दानवीर बलिराज हैं देंगे मुझको दान।
राखी बाँधूँ, लाउँगी हरि को संग मैं आन।
जो दें हरि को दान में, ऐसा दाता कौन ?
ढूँढ रहा हर ओर पर मिला न हूँ मैं मौन।
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