विदुरानी विव्हल हुईं किया बहुत सत्कार।
गूदा फेंके प्रमुदित इतनी हरि से मिलके।
बड़े प्रेम से कृष्ण खाएँ केले के छिलके।
विदुर नहीं जानोगे तुम यह होगा तुम्हें विषाद।
इन छिलकों में माँ शबरी के बेरों का था स्वाद।
प्रेम के भूखे कृपा निधान।
भक्त के वश में हैं भगवान।।
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