हमारा दर्द-ए-सर जाता कहाँ है
दिल-ए-बेताब सीने से निकल कर
चला है तू किधर जाता कहाँ है
अदम कहते हैं उस कूचे को ऐ दिल
इधर आ बे-ख़बर जाता कहाँ है
कहूँ किस मुँह से मैं तेरे दहन है
जो होता तो किधर जाता कहाँ है
तिरे जाते ही मर जाऊँगा ज़ालिम
मुझे तू छोड़ कर जाता कहाँ है
हमारे हाथ से दामन बचा कर
अरे बेदाद-गर जाता कहाँ है
तिरी चोरी ही सब मेरी नज़र में
चुरा कर तू नज़र जाता कहाँ है
अगरचे पा-शिकस्ता हम हैं ऐ 'दाग़'
मगर क़स्द-ए-सफ़र जाता कहाँ है
No comments:
Post a Comment