Thursday, 1 September 2022

DUSHYANT KUMAAR..... COUPLETS.....

रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो

The world dotes on guide's great style. 
Hold this staggering world 
for a while. 

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कवंल के फूल कुम्लहाने लगे हैं

Now water of this pond
 needs a change. 
These lotus flowers are 
in wilting range. 

अब नई तहज़ीब के पेशे – नज़र हम
आदमी को भून कर खाने लगे हैं

Now as a present to  manners new. 
We are taking cooked human stew. 

कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप
जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही

What sort of torches did you carry in dark? 
Even that didn't last, what was alit in park. 

खड़े हुए थे अलाव की आंच लेने को
सब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ गए

People were standing for heat from bonfire. 
All of them burnt their palms 
in the fire. 

लहूलुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ लोग उठे, दूर जाके बैठ गए



हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए
इस हिमाला से कोई गंगा निकलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

दिलों की बुझ गयी आग को जलाने और जलाए रखने का हुनर सिखाने वाला  :-

मत कहो आकाश में कोहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है
हर किसी का पैर घुटनों तक सना है

भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है ज़ेरे बहस यह मुद्दआ

यहां तक आते-आते सूख जाती हैं सभी नदियां
मुझे मालूम है पानी कहां ठहरा हुआ होगा

देखिए उस तरफ़ उजाला है
जिस तरफ़ रौशनी नहीं जाती

एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती

जिसने नज़र उठाई वही शख़्स गुम हुआ
उस जिस्म के तिलिस्म की बंदिश तो देखिए

एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहां राह भूल जाता हूं

तू किसी रेल सी गुजरती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूं

चढ़ाता फिर रहा हूं जो चढ़ावे
तुम्हारे नाम पर बोले हुए हैं

तमाम रात तेरे मयकदे में मय पी है
तमाम उम्र नशे में निकल न जाए कहीं

तुम्हें भी इस बहाने देख लेंगे
इधर दो चार पत्थर फेंक दो तुम भी

आंधी में सिर्फ हम ही उखड़ कर नहीं गिरे
हमसे जुड़ा हुआ था कोई एक नाम और

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फसल रही होगी

वह घर में मेज़ पर कोहनी टिकाए बैठी है
थमी हुई है वहीं उम्र आजकल लोगो
जो हमको ढूंढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा
तसव्वुर ऐसे ग़ैर – आबाद हल्क़ों तक चला आया

वो सलीबों के क़रीब आए तो हमको
क़ायदे क़ानून समझाने लगे हैं

कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही

नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
ज़रा सी बात है दिल से निकल न जाए कहीं

हुज़ूर आरिज़ो रुखसार क्या तमाम बदन
मेरी सुने तो मुजस्सम गुलाब हो जाए

यह ज़ुबां हमसे सी नहीं जाती
जिंदगी है कि जी नहीं जाती
मैं बेपनाह अंधेरों को सुब्ह कैसे कहूं
मैं इन नज़ारों का अंधा तमाशबीन नहीं

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते-गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पर शाम सिरहाने लगा के बैठ गए

तमाम रात तेरे मयकदे में मय पी है
तमाम उम्र नशे में निकल ना जाए कहीं

मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

शब ग़नीमत थी लोग कहते थे
सुब्ह बदनाम हो रही है अब

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर
और कुछ हो या न हो आकाश सी छाती तो है

ग़जब है सच को सच कहते नहीं वे
क़ुरानो उपनिषद खोले हुए हैं

किसी संवेदना के काम आएंगे
यहां टूटे हुए पर फेंक दो तुम भी

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

दुख को बहुत सहेज के रखना पड़ा हमें
सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया

दिल को बहला ले, इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख लेकिन इस कदऱ प्यारे न देख

थोड़ी आग बनी रहने दो थोड़ा धुआं निकलने दो
कल देखोगी कई मुसाफिर इसी बहाने आएंगे

अब सब से पूछता हूं बताओ तो कौन था
वो बदनसीब शख़्स जो मेरी जगह जिया
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

Tags: Birth Anniversary,

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