Friday, 23 September 2022

ETBAAR SAAJID..... COUPLETS

तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
मैं बहुत दिनों से उदास हूँ मुझे कोई शाम उधार दो 


जिन्हें मानता ही नहीं ये दिल वही लोग मेरे हैं हम-सफ़र
मुझे हर तरह से जो रास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए 



किसे पाने की ख़्वाहिश है कि 'साजिद'
मैं रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को खो रहा हूँ 


फ़क़त एक धुन थी कि रात-दिन इसी ख़्वाब-ज़ार में गुम रहें
वो सुरूर ऐसा सुरूर था वो ख़ुमार ऐसा ख़ुमार था 

ढूँढ़ते क्या हो इन आँखों में कहानी मेरी
ख़ुद में गुम रहना तो आदत है पुरानी मेरी  


कैसे कहें कि जान से प्यारा नहीं रहा
ये और बात अब वो हमारा नहीं रहा 

अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
 वो भी दिन थे कि कभी तेरी ज़रूरत हम थे 


ये बरसों का तअल्लुक़ तोड़ देना चाहते हैं हम
अब अपने आप को भी छोड़ देना चाहते हैं हम 

गुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैर
इक नई बात निकल आती है हर बात के साथ


फिर वही लम्बी दो-पहरें हैं फिर वही दिल की हालत है
बाहर कितना सन्नाटा है अंदर कितनी वहशत है


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