Saturday, 24 September 2022

KHUMAAR BARAHBANKVI.. GHAZAL..

कभी शेर-ओ-नग़्मा बन के कभी आँसुओं में ढल के 


वो मुझे मिले तो लेकिन मिले सूरतें बदल के 

ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पा-ए-नाज़ुक 
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के 

वही आँख बे-बहा है जो ग़म-ए-जहाँ में डूबे 
वही जाम जाम है जो बग़ैर फ़र्क़ छलके 

न तो होश से तआ'रुफ़ न जुनूँ से आश्नाई 
ये कहाँ पहुँच गए हम तिरी बज़्म से निकल के 
ये चराग़-ए-अंजुमन तो हैं बस एक शब के मेहमाँ 
तू जला वो शम्अ' ऐ दिल जो बुझे कभी न जल के 

कोई ऐ 'ख़ुमार' उन को मिरे शे'र नज़्र कर दे 
जो मुख़ालिफ़ीन मुख़्लिस नहीं मो'तरिफ़ ग़ज़ल के 

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