Monday, 3 October 2022

GHULAM MOHAMMAD NAASIR.. BAAROOD KE BADLE HAATHON MEN AA JAAE KITAAB TO ACHCHHA HO.....

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो 

ऐ काश हमारी आँखों का इक्कीसवाँ ख़्वाब तो अच्छा हो 

हर पत्ता ना-आसूदा है माहौल-ए-चमन आलूदा है 

रह जाएँ लरज़ती शाख़ों पर दो चार गुलाब तो अच्छा हो 

यूँ शोर का दरिया बिफरा है चिड़ियों ने चहकना छोड़ दिया 

ख़तरे के निशान से नीचे अब उतरे सैलाब तो अच्छा हो 

हर साल की आख़िरी शामों में दो चार वरक़ उड़ जाते हैं 

अब और न बिखरे रिश्तों की बोसीदा किताब तो अच्छा हो 

हर बच्चा आँखें खोलते ही करता है सवाल मोहब्बत का 

दुनिया के किसी गोशे से उसे मिल जाए जवाब तो अच्छा हो 



Shariq Kaifi 
हमीं तक रह गया क़िस्सा हमारा 
किसी ने ख़त नहीं खोला हमारा 

पढ़ाई चल रही है ज़िंदगी की 
अभी उतरा नहीं बस्ता हमारा 

मुआ'फ़ी और इतनी सी ख़ता पर 
सज़ा से काम चल जाता हमारा 

किसी को फिर भी महँगे लग रहे थे 
फ़क़त साँसों का ख़र्चा था हमारा 

यहीं तक इस शिकायत को न समझो 
ख़ुदा तक जाएगा झगड़ा हमारा 

तरफ़-दारी नहीं कर पाए दिल की 
अकेला पड़ गया बंदा हमारा 
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तआ'रुफ़ क्या करा आए किसी से 
उसी के साथ है साया हमारा 

नहीं थे जश्न-ए-याद-ए-यार में हम 
सो घर पर आ गया हिस्सा हमारा 

हमें भी चाहिए तन्हाई 'शारिक़' 
समझता ही नहीं साया हमारा 

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