इतने मजबूर रहे हैं कभी हालात से हम
नश्शा-ए-मय से कहीं प्यास बुझी है दिल की
तिश्नगी और बढ़ा लाए ख़राजात से हम
आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम
इश्क़ में आज भी है नीम-निगाही का चलन half open eyes
प्यार करते हैं उसी हुस्न-ए-रिवायात से हम beauty of tradition
मर्कज़-ए-दीदा-ए-ख़ुबान-ए-जहाँ हैं भी तो क्या center of attraction of eyes of world, beloved
एक निस्बत भी तो रखते हैं तिरी ज़ात से हम relation/ breed, caste, tribe
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