आलम में तुझ से लाख सही तू मगर कहाँ?...... हाली.....
The one I have am dieng for, is a different thing .
Many may be like you but who has your fling?
आप की नाज़ुक कमर पर बोझ पड़ता है बहुत
बढ़ चले हैं हद से गेसू कुछ इन्हें कम कीजिए..... आतिश.....
It's weighs very heavily on your delicate waist.
Tress has grown beyond limits ,shorten to taste.
ये खुले खुले से गेसू इन्हें लाख तू सँवारे
मिरे हाथ से सँवरते तो कुछ और बात होती..... आग़ा हश्र कश्मीरी.....
You arrange these tossed tresses by any way of book.
If shaped by me, would give you a very different look.
ख़त बढ़ा काकुल बढ़े ज़ुल्फ़ें बढ़ीं गेसू बढ़े
हुस्न की सरकार में जितने बढ़े हिन्दू बढ़े
..... इब्राहिम ज़ौक़.....
Sharpness and tress, may grow manyfold please.
When the beauty governs,
only Hindus increase. '
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है।..... अंजुम सलीमी.....
Neither mother's prayers nor shade of father's grace.
Today I have celebrated my birthday with me in place.
ये ज़िन्दगी के कड़े कोस याद आते हैं
तिरी निगाह-ए-करम का घना घना साया।
..... फ़िराक़.....
In these tough miles of life, I recall the grade.
Dense shade that your graceful eyes 've made.
कभी लफ़्ज़ों से गद्दारी न करना।
ग़ज़ल पढ़ना अदाकारी न करना
..... वसीम बरेलवी.....
Never be a traitor with the words
Read ghazal, don't act afterwards
अफ़सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़
लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ..... क़द्र बिलग्रामी.....
What's the charm of moonlight for a sad man.
Wrapped in shroud he is lying as a dead man.
वतन की पासबानी जान-ओ-ईमाँ से भी अफ़ज़ल है
मैं अपने मुल्क की ख़ातिर कफ़न भी साथ रखता हूँ..... अज्ञात.....
Better than religion and life, is protection of motherland.
I keep a shroud with me for protection of motherland.
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद..... कैफ़ी आज़मी.....
There's just no limit of human desires to expand.
Needs two yards of shroud with two yards of land.
आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या..... ग़ालिब.....
Today I am going there with sword and shroud.
What objection for my murder 'll she be proud?
अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है ये बात।
ये वक़्त मेरी रिसाई का वक़्त है कि नहीं
..... अज़ीज़ हमीद मदनी.....
Besides politics of door man, there's a thing in mind.
Whether this period of access is right for my kind?
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