Tuesday, 22 November 2022

AHMAD MUSHTAAQ.. GHAZAL.. BAHUT RUK RUK KE CHALTII HAI HAWAA KHAALII MAKAANON MEN.......

बहुत रुक रुक के चलती है हवा ख़ाली मकानों में 
बुझे टुकड़े पड़े हैं सिगरेटों के राख-दानों में 

Wind moves in empty houses in a mode of stay.
 Burnt out cigarette pieces are there in ash tray. 

धुएँ से आसमाँ का रंग मैला होता जाता है 
हरे जंगल बदलते जा रहे हैं कार-ख़ानों में 

Green jungles are turning into factories of late. 
Colour of sky by smoke is becoming gray. 

भली लगती है आँखों को नए फूलों की रंगत भी 
पुराने ज़मज़मे भी गूँजते रहते हैं कानों में 

Eyes like the colours of new grown flowers. 
Sound of old concerts in ears have a  stay. 


वही गुलशन है लेकिन वक़्त की पर्वाज़ तो देखो 
कोई ताइर नहीं पिछले बरस के आशियानों में 

Garden is same but with move of times. 
No bird  in last year nests make stay. 

ज़बानों पर उलझते दोस्तों को कौन समझाए 
मोहब्बत की ज़बाँ मुम्ताज़ है सारी ज़बानों में 

When 'll friends in language tussle learn?
Love language is the  sweetest of all to say. 

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