Saturday, 12 November 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में 

और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में 

मौसमों के आने में मौसमों के जाने में 

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं 

उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में 

फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती 

कौन साँप रखता है उस के आशियाने में 

दूसरी कोई लड़की ज़िंदगी में आएगी 

कितनी देर लगती है उस को भूल जाने में

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