शायद हम ने आज ग़ज़ल सी बात लिखी है आँखों में
जैसे इक हरीजन लड़की मंदिर के दरवाज़े पर
शाम दियों की थाल सजाए झाँक रही है आँखों में
इस रूमाल को काम में लाओ अपनी पलकें साफ़ करो
मैला मैला चाँद नहीं है धूल जमी है आँखों में
पढ़ता जा ये मंज़र-नामा ज़र्द अज़ीम पहाड़ों का
धूप खिली पलकों के ऊपर बर्फ़ जमी है आँखों में
मैं ने इक नॉवेल लिक्खा है आने वाली सुब्ह के नाम
कितनी रातों का जागा हूँ नींद भरी है आँखों में
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