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Saturday, 12 November 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL

हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है 

कहीं न छोड़ के जाओ बड़ा अंधेरा है 

उदास कर गए बे-साख़्ता लतीफ़े भी 

अब आँसुओं से रुलाओ बड़ा अँधेरा है 

कोई सितारा नहीं पत्थरों की पलकों पर 

कोई चराग़ जलाओ बड़ा अँधेरा है 

हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके 

कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है 

किताबें कैसी उठा लाए मय-कदे वाले 

ग़ज़ल के जाम उठाओ बड़ा अँधेरा है 

ग़ज़ल में जिस की हमेशा चराग़ जलते हैं 

उसे कहीं से बुलाओ बड़ा अँधेरा है 

वो चाँदनी की बशारत है हर्फ़-ए-आख़िर तक

बशीर बद्र को लाओ बड़ा अंधेरा है

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