Sunday, 13 November 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL.. AZMATEN SAB TIRI KHUDAAI KII......

अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
हैसियत क्या मिरी इकाई की 

Majestic is your being a God. What's there for the unit to nod. 

मिरे होंटों के फूल सूख गए 
तुम ने क्या मुझ से बेवफ़ाई की 

Flowers of my lips have dried. 
How to be faithless O fraud! 

सब मिरे हाथ पाँव लफ़्ज़ों के 
और आँखें भी रौशनाई की 

My hands and legs are words. 
Eyes too are inky, look odd. 

मैं ही मुल्ज़िम हूँ मैं ही मुंसिफ़ हूँ 
कोई सूरत नहीं रिहाई की 

I am a culprit and judge too. 
No way for the relief, by God! 

इक बरस ज़िंदगी का बीत गया 
तह जमी एक और काई की 

One year of life is spent. 
One more slime layer on rod. 

अब तरसते रहो ग़ज़ल के लिए 
तुम ने लफ़्ज़ों से बेवफ़ाई की

Now keep longing for a ghazal. 
You were faithless with words O fraud! 

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