Saturday, 12 November 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL

कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए 

रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए 

क्यूँ हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़्सोस हो 

सैकड़ों बे-घर परिंदों के ठिकाने हो गए 

जाओ उन कमरों के आईने उठा कर फेंक दो 

बे-अदब ये कह रहे हैं हम पुराने हो गए 

ये भी मुमकिन है कि मैं ने उस को पहचाना न हो 

अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए 

पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन थे 

आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

No comments:

Post a Comment