Thursday, 24 November 2022

PARVEEN SHAKIR. GHAZAL.. KAMAAL-E-ZABT KO KHUD BHI TO AAZMAUNGII.....

कमाल-ए-ज़ब्त को ख़ुद भी तो आज़माऊँगी 
मैं अपने हाथ से उस की दुल्हन सजाऊँगी 

I'll try the quality of control on my own 
For him I will decorate  bride on my own. 

सुपुर्द कर के उसे चाँदनी के हाथों में 
मैं अपने घर के अँधेरों को लौट आऊँगी 

Handing him over in care of moonlight. 
I will  return to dark home of my own. 

बदन के कर्ब को वो भी समझ न पाएगा 
मैं दिल में रोऊँगी आँखों में मुस्कुराऊँगी 

He won't understand my body pain. 
I will weep at heart to smile in eyes of my own. 

वो क्या गया कि रिफ़ाक़त के सारे लुत्फ़ गए 
मैं किस से रूठ सकूँगी किसे मनाऊँगी 

All joys of friendship left with him. 
With whom will I agitate, whom to own. 

अब उस का फ़न तो किसी और से हुआ मंसूब 
मैं किस की नज़्म अकेले में गुनगुनाऊँगी

His skill  now belongs to someone else. 
Whose poem  will I hum when I am alone. 

वो एक रिश्ता-ए-बेनाम भी नहीं लेकिन 
मैं अब भी उस के इशारों पे सर झुकाऊँगी 

Now his relation has no name left. 
Still I 'll bow before guidance of his own. 

बिछा दिया था गुलाबों के साथ अपना वजूद 
वो सो के उट्ठे तो ख़्वाबों की राख उठाऊँगी 

I  had spread my entity with roses for him. 
On waking up, will gather ashes of my own. 

समाअ'तों में घने जंगलों की साँसें हैं 
मैं अब कभी तिरी आवाज़ सुन न पाऊँगी 

In silence are breaths of dense jungles. 
I won't  listen your voice for my own. 

जवाज़ ढूँड रहा था नई मोहब्बत का 
वो कह रहा था कि मैं उस को भूल जाऊँगी

He looked for justification of new love.
He was saying I will forget him on my own. 

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