Thursday, 24 November 2022

SAAGHAR SIDDIQII.. GHAZAL.. AGAR BAZM-E-HASTII MEN AURAT NA HOTII.....

अगर बज़्म-ए-हस्ती में औरत न होती 
ख़यालों की रंगीन जन्नत न होती 

If woman was not to exist. 
Heaven won't also persist. 

सितारों के दिलकश फ़साने न होते 
बहारों की नाज़ुक हक़ीक़त न होती 

No attractive tale of stars. 
Delicate spring won't exist. 

जबीनों पे नूर-ए-मसर्रत न खिलता 
निगाहों में शान-ए-मुरव्वत न होती 

No glow of joy on foreheads. 
No pleasant glimpse to persist

घटाओं की आमद को सावन तरसते 
फ़ज़ाओं में बहकी बग़ावत न होती 

Spring would long for clouds. 
No enmity in weather 'd exist. 

फ़क़ीरों को इरफ़ान-ए-हस्ती न मिलता 
अता ज़ाहिदों को इबादत न होती 

Saints not blessed with life. 
Prayer' n preacher not to exist. 

मुसाफ़िर सदा मंज़िलों पर भटकते 
सफ़ीनों को साहिल की क़ुर्बत न होती 

Travellers 'd roam near goal. Boats' n shore not to coexist. 

हर इक फूल का रंग फीका सा रहता 
नसीम-ए-बहाराँ में निकहत न होती 

Every flower be dull coloured. 
In spring breeze incense won't exist. 

ख़ुदाई का इंसाफ़ ख़ामोश रहता 
सुना है किसी की शफ़ाअत न होती 

Godly justice 'd be silent. 
No innovation' d exist. 

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