Sunday, 13 November 2022

SHAKEEL BADAYUNI. . GHAZAL

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया 
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया 



यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है 

आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया 

कभी तक़दीर का मातम कभी दुनिया का गिला 

मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया 

मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरी serial crying 

इस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया 

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील' 

मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

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