Thursday, 15 December 2022

BASHIR BADR.. GHAZAL

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो 
मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बा'द सहर न हो 

वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे 
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मिरी दुआ में असर न हो 

मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी 
न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो 

ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी 
न बुझे ख़राबे की रौशनी कभी बे-चराग़ ये घर न हो 

कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के 
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो 

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