शङ्खं संधदतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषा-वृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्।।
मधु कैटभ के हनन हेतु ब्रह्मा जी ने जिन को ध्याया
उन्हीं महाकाली त्रिनेत्रि के पूजन को मैं भी आया।
दस हाथों में खड़ग चक्र हैं गदा बाण औ' परिघ शूल
मस्तक शङ्ख भुषुण्डि धरे हैं आभूषण माँ के अनुकूल।
उनकी कान्ति नीलमणि की सी दस मुख दस पैरों से युक्त
दिव्य अङ्ग हैं देवी माँ के कमलजन्मा पूजन उपयुक्त।।
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