जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं
हाँ ठीक है मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ
आख़िर मिरे मिज़ाज में क्यूँ दख़्ल दे कोई
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गए ज़बान में क्या
अपने सभी गिले बजा पर है यही कि दिलरुबा
मेरा तिरा मोआ'मला इश्क़ के बस का था नहीं
कुछ तो रिश्ता है तुम से कम-बख़्तों
कुछ नहीं कोई बद-दुआ' भेजो
इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र
काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
मुझे ग़रज़ है मिरी जान ग़ुल मचाने से
न तेरे आने से मतलब न तेरे जाने से
सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई
मैं अब हर शख़्स से उक्ता चुका हूँ
फ़क़त कुछ दोस्त हैं और दोस्त भी क्या
तुझ को ख़बर नहीं कि तिरा कर्ब देख कर
अक्सर तिरा मज़ाक़ उड़ाता रहा हूँ मैं
सोचा है कि अब कार-ए-मसीहा न करेंगे
वो ख़ून भी थूकेगा तो पर्वा न करेंगे
हम तिरा हिज्र मनाने के लिए निकले हैं
शहर में आग लगाने के लिए निकले हैं
मोहज़्ज़ब आदमी पतलून के बटन तो लगा
कि इर्तिक़ा है इबारत बटन लगाने से
दिल अब दुनिया पे ला'नत कर कि इस की
बहुत ख़िदमत-गुज़ारी हो गई है
बहकना चाहो तो बहको, संभलना चाहो तो सम्भलो
मैं अपने मैकदे में हर तरह का जाम रखता हूँ
अजमल सिद्दीक़ी
उसके नुक्ते भी सुनो, दुःख भी निहारो उसके
अहल-ए-दिल तुम भी चलो अहल-ए-नज़र तुम भी चलो
अजमल सिद्दीक़ी
मेरे तेवर बुझ गए मेरी निगाहें जल गई
अब कोई आईना-रू आईना-दार आया तो क्या
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