Saturday, 3 December 2022

KAIFI AAZMI.. GHAZAL

शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा 
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा 

For nothing, birds haven't set a roar. 
From city one entered in jungle core. 

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था 
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा 

Those who chopped trees were aware. 
Bodies 'd burn when shade was no more. 

बानी-ए-जश्न-ए-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं 
किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा 

Voice of spring festival had no clue. 
Who on thorns, would his blood pour? 

बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी 
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा 

Smiling bird seated on electric wire. 
Thinks that jungle 'd be alien to core. 

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे 
हर सराब उन को समुंदर नज़र आया होगा

Flying from jungle thirsty in panic. 
Must have seen each mirage, sea shore. 

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