Tuesday, 13 December 2022

MOHSIN NAQVI.. GHAZAL..

ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी 

The heart, this mad heart, why get put out, just roam. 
In this desert there was a city where is it just roam. 

कल शब मुझे बे-शक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया 
मैं ने कहा तू कौन है उस ने कहा आवारगी 

I was disturbed by the voice of faceless last night 
When I asked, who are you? He said you just roam. 

लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ 
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी

Chums! How 'll I live in this
 city where it is. 
 A crime to think alone,but punishment : just roam

ये दर्द की तन्हाइयाँ ये दश्त का वीराँ सफ़र 
हम लोग तो उक्ता गए अपनी सुना आवारगी

These solitudes of pain, the journey of desert. 
We are feeling bored, what about you, just roam. 

इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मिरे ग़म का सबब strange gust/cause
सहरा की भीगी रेत पर मैं ने लिखा आवारगी tear filled desert sand

When an unknown gust asked the cause of my pain. 
On tear wet desert sand, I  wrote: just roam. 

उस सम्त वहशी ख़्वाहिशों की ज़द में पैमाने वफ़ा
इस सम्त लहरों की धमक कच्चा घड़ा आवारगी

Within  range of animal desires was the cup of faith that way
 Roar of waves and uncooked earthen pot this side amidst foam

कल रात तन्हा चाँद को देखा था मैं ने ख़्वाब में 

'मोहसिन' मुझे रास आएगी शायद सदा
आवारगी 

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