Wednesday, 14 December 2022

REKHTA.. TODAY'S 5 COUPLETS..

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं 
..... ख़ुमार बाराबंकवी.....

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है..... राहत इन्दौरी..... 



कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब 
आज तुम याद बे-हिसाब आए 
..... फ़ैज़ अहमद फ़ैज़..... 

एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें 
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं 
..... फ़िराक़ गोरखपुरी..... 

कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद 
आईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं 
..... शकेब जलाली..... 


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे 
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे 
..... वसीम बरेलवी..... 

भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया 
ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं 
..... लाला माधव राम जौहर..... 

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है 
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है 
..... वसीम बरेलवी..... 

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से 
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं..... जलील मानिकपुरी..... 

उस की आँखों को ग़ौर से देखो 
मंदिरों में चराग़ जलते हैं 
..... बशीर बद्र..... 

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे 
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे 
..... मिर्ज़ा ग़ालिब..... 

दिल की बिसात क्या थी निगाह-ए-जमाल में 
इक आईना था टूट गया देख-भाल में 
..... सीमाब अकबराबादी..... 

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए 
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था 
..... मिर्ज़ा ग़ालिब..... 

तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं 
हाँ मुझी को ख़राब होना था 
..... जिगर मुरादाबादी..... 

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे 
होना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा..... मजाज़ लखनवी..... 

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी 
कुछ मुझे भी ख़राब होना था 
...... मजाज़ लखनवी..... 

जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो slaughter
जहाँ तज़लील है जीना वहाँ बेहतर है मर जाना..... गुलज़ार देहलवी..... 
Humiliated

सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते 

हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते..... बिस्मिल सईदी..... 








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