Monday, 19 December 2022

REKHTA.. TODAY'S 5 +7 COUPLETS..

ज़ौक़ जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
..... शैख़ इब्राहिम ज़ौक़....

' Zauq'! Those persons spoilt in mosque, O priest ! 
Bring them to tavern, 'll get rectified at least. 

मुल्ला की दौड़ जैसे है मस्जिद तलक 'नसीर' 
है मस्त की भी ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार तक पहुँच..... शाह नसीर..... 

O' Naseer' as the priest has mosque within reach. 
The frenzied has pots of the  tavern within reach. 

अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है 
इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम..... अल्लामा इक़बाल..... 

The wisdom is a detective, who takes many a shape. 
Poor love is neither priest, nor teacher, curer to escape. 

आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू 
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला..... सरवर आलम राज़....

Desire, longing, complaint, tears and hope. 
Referring to you, I had so
 much to cope. 

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे
..... जौन एलिया.....

How attractive are you, how pacifier am I? 
What a calamity that both of 
us would die ! 

दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद 
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद..... जिगर मुरादाबादी.....

Neither world cruelty, nor my loyalty do I recollect. 
But for love, there's nothing in my memory to react. 

क्या सितम है कि अब तिरी सूरत 
ग़ौर करने पे याद आती है
... जौन एलिया..... 

What a pity that now even
 your face. 
Only  thinking about deep, 
can I trace. 

सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं 
और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं 
..... जौन एलिया..... 

All griefs of world are mine. 
And it's sad that I am thine. 

ये सवाद-ए-शहर और ऐसा कहाँ हुस्न-ए-मलीह 
शश-जिहत में मुल्क देखा ही नहीं पंजाब सा..... जुरअत क़लंदर बख़्श..... 

This environment of city, where is such wheatish beauty ? 
In six facets of this place, nothing like Punjab you can trace. 

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ 
जंगल जंगल सन्नाटा सफ़्फ़ाक हुआ
..... ज़ेब गौरी..... 

As dagger shone, torn open was the night chest. 
Through out jungle, silence
 was clear, at it's best. 

जैसे बारिश से धुले सेहन-ए-गुलिस्ताँ 'अमजद' 
आँख जब ख़ुश्क हुई और भी चेहरा चमका
..... अमजद अल्लाह अमजद..... 

O'Amjad'! As the garden compound is washed by rain. 
When eyes finally dried, shone glow of face to retain. 

लहू से मैं ने लिखा था जो कुछ दीवार-ए-ज़िंदाँ पर 
वो बिजली बन के चमका दामन-ए-सुब्ह-ए-गुलिस्ताँ पर 
..... सीमाब अकबराबादी..... 

What I had written with my own blood on the prison wall. 
Shone as electric spark on hem of garden with morn' fall. 





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