Wednesday, 14 December 2022

SHAANUL-HAQ HAQQUI.. GHAZAL.. TUM SE ULFAT KE TAQAAZE NA NIBHAAYE JAATE.....

तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते 

वर्ना हम को भी तमन्ना थी कि चाहे जाते 

दिल के मारों का न कर ग़म कि ये अंदोह-नसीब 

ज़ख़्म भी दिल में न होता तो कराहे जाते 

कम-निगाही की हमें ख़ुद भी कहाँ थी तौफ़ीक़ 

कम-निगाही के लिए उज़्र न चाहे जाते 

काश ऐ अब्र-ए-बहारी तिरे बहके से क़दम 

मेरी उम्मीद के सहरा में भी गाहे जाते 

हम भी क्यूँ दहर की रफ़्तार से होते पामाल 

हम भी हर लग़्ज़िश-ए-मस्ती को सराहे जाते 

लज़्ज़त-ए-दर्द से आसूदा कहाँ दिल वाले 

हैं फ़क़त दर्द की हसरत में कराहे जाते

है तिरे फ़ित्ना-ए-रफ़्तार का शोहरा क्या क्या 

गरचे देखा न किसी ने सर-ए-राहे जाते 

दी न मोहलत हमें हस्ती ने वफ़ा की वर्ना 

और कुछ दिन ग़म-ए-हस्ती से निबाहे जाते

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