वर्ना हम को भी तमन्ना थी कि चाहे जाते
दिल के मारों का न कर ग़म कि ये अंदोह-नसीब
ज़ख़्म भी दिल में न होता तो कराहे जाते
कम-निगाही की हमें ख़ुद भी कहाँ थी तौफ़ीक़
कम-निगाही के लिए उज़्र न चाहे जाते
काश ऐ अब्र-ए-बहारी तिरे बहके से क़दम
मेरी उम्मीद के सहरा में भी गाहे जाते
हम भी क्यूँ दहर की रफ़्तार से होते पामाल
हम भी हर लग़्ज़िश-ए-मस्ती को सराहे जाते
लज़्ज़त-ए-दर्द से आसूदा कहाँ दिल वाले
हैं फ़क़त दर्द की हसरत में कराहे जाते
है तिरे फ़ित्ना-ए-रफ़्तार का शोहरा क्या क्या
गरचे देखा न किसी ने सर-ए-राहे जाते
दी न मोहलत हमें हस्ती ने वफ़ा की वर्ना
और कुछ दिन ग़म-ए-हस्ती से निबाहे जाते
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