Saturday, 10 December 2022

SHAHARYAAR.. GHAZAL.. JAB BHI MILTII HAI MUJHE AJNABII LAGTII KYUUN HAI......



जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है 
ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है

When ever it meets, a stranger  it appears. 
Every day life keeps  changing  its gears. 

धूप के क़हर का डर है तो दयार - ए-शब से
सर-बरहना कोई परछाईं निकलती क्यूँ है 

Bare headed, why does a shadow emerge
From  mansion of  night, if sun it fears. 

मुझ को अपना न कहा इस का गिला तुझ से नहीं 
इस का शिकवा है कि बेगाना समझती क्यूँ है lament/stranger

तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी 
दिल में रह रह के यही बात खटकती क्यूँ है incessant feeling of obstacle

मुझ से क्या पूछ रहे हो मिरी वहशत का सबब 
बू-ए-आवारा से पूछो कि भटकती क्यूँ है
Smell of vagabond /wander

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