Sunday, 1 January 2023

हरि थे थामो मन मन की डोर.... रवि मौन की रचना

हरि थे थामो मन की डोर।

बृन्दाबन का रास रचैया, नटवर, नन्द किशोर। 
हे गिरिधर, बनवारी, मेरो चित भटकै
 चहुँ ओर।। 
हरि थे थामो मन की डोर...... 

मेरी भी सुध लीजो हे प्रभु, राधा का चितचोर। 
दीनानाथ, दयानिधि, माधव, भक्तन का सिरमौर।। 
हरि थे थामो मन की डोर..... 

हे गौपालक, जसुदा नन्दन, बृज का माखनचोर। 
विषय-ग्राह खींच्याँ ले स्वामी गहरा 
जल की ओर।। 
हरि थे थामो मन की डोर..... 

बंसी धुन तो छेड़ कन्हैया, गैयाँ ढूँडैं ठोर ।
नाचैं राधा अर साँवरिया, मौन यो थारो  ढोर ।। 
हरि थे थामो मन की डोर....... 

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