उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्ध्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिकेश्रीपादुकामादुरात।।
भक्तन की मन इच्छा पूर्ण करी , हे कल्पलता माँ त्रिपुर सुन्दरी।
चरण कमल में पादुका, ग्रहण करें देव आराधिता।
उत्तम चन्दन औ' कुंकुम के, माता ये धुलीं लाल जल से।
अगणित मणियों औ' मूँगों से, धुल देव-नारियों अङ्गों से।
कर भक्ति सहित पोंछा इनको, कर स्वच्छ तभी सोंपा इनको।। ।।
देवान्द्रादिभिरर्चितं सुर गणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके ।। ।।
माँ ! आप बैठें इसलिए देवों ने है निर्मित किया।
इस दिव्य सिंहासन को पावन कीजिए हे शिव प्रिया।
पूजन करें सुरराज आदि भी, यह सिंहासन है वही।
इसे राशि राशि सुवर्ण, अपनी कान्ति से चमका रही।
होता प्रकाशित यह प्रभा से औ' सुगन्धित भी किया ।
केतकी', चम्पा के निर्मल तेल से उबटन किया।
कर रहीं प्रस्तुत देव कन्याएँ इसे सत्कार से।
माँ आप तो स्वीकार करतीं भेंट जो हो प्यार से।। ।।
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