Friday, 10 February 2023

आँसू... ख़ुदकुशी... रवि मौन

शब-ए-फ़िराक़ की तन्हाइयों से घबरा कर
तुम्हारे मिलने की उम्मीद आँख में पाकर 
मचल कर आ गए आँखों में दिल को ठुकरा कर
बहुत तलाश किया तुम को हर तरफ़ जा कर
न पाया जब तुम्हें वाँ भी तो ग़म से घबरा कर 
टपक के पलकों से अश्कों ने ख़ुद-कुशी कर ली

Troubled by solitude of departure at night. 
Hoping to find you in eyes within sight. 
They surfaced in eyes and shunned the heart. 
Searched over and again then part by part. 
Not finding, grief amassed and made to decide. 
Tears dropped from the eyes to commit suicide. 

Transcreated by Ravi Maun. 

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