Wednesday, 22 March 2023

PARVEEN FANAA SAYYAD...GHAZAL.. TUJH KO AB KOI SHIKAAYAT TO NAHIIN.......

तुझ को अब कोई शिकायत तो नहीं 
ये मगर तर्क-ए-मोहब्बत तो नहीं 

मेरी आँखों में उतरने वाले 
डूब जाना तिरी आदत तो नहीं 

You who got into my eyes. 
Isn't it your habit to sink? 

तुझ से बेगाने का ग़म है वर्ना 
मुझ को ख़ुद अपनी ज़रूरत तो नहीं 

खुल के रो लूँ तो ज़रा जी सँभले 
मुस्कुराना ही मसर्रत तो नहीं 


तुझ से फ़रहाद का तेशा न उठा 
इस जुनूँ पर मुझे हैरत तो नहीं 

फिर से कह दे कि तिरी मंज़िल-ए-शौक़ 
मेरा दिल है मिरी सूरत तो नहीं 

तेरी पहचान के लाखों अंदाज़ 
सर झुकाना ही इबादत तो नहीं 

चचचॐॐॐ

Monday, 20 March 2023

O DES SE AANE WAALE BATAA.. AKHTAR SHIIRAANI..

ओ देस से आने वाला है बता
ओ देस से आने वाले बता
किस हाल में हैं यारान-ए-वतन
आवारा-ए-ग़ुर्बत को भी सुना
किस रंग में है कनआन-ए-वतन
वो बाग़-ए-वतन फ़िरदौस-ए-वतन
वो सर्व-ए-वतन रैहान-ए-वतन
ओ देस से आने वाले बता

* यारान-ए-वतन - देश के मित्र
आवारा-ए-ग़ुर्बत - गरीबी से बेघर
कनआन-ए-वतन - एक धार्मिक देश 
रैहान-ए-वतन - वतन की ख़ुशबू 


ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में
मस्ताना हवाएँ आती हैं
क्या अब भी वहाँ के पर्बत पर
घनघोर घटाएँ छाती हैं
क्या अब भी वहाँ की बरखाएँ
वैसे ही दिलों को भाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वतन में वैसे ही
सरमस्त नज़ारे होते हैं
क्या अब भी सुहानी रातों को
वो चाँद सितारे होते हैं
हम खेल जो खेला करते थे
क्या अब वही सारे होते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी शफ़क़ के सायों में
दिन रात के दामन मिलते हैं
क्या अब भी चमन में वैसे ही
ख़ुश-रंग शगूफ़े खिलते हैं
बरसाती हवा की लहरों से
भीगे हुए पौधे हिलते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
शादाब-ओ-शगुफ़्ता फूलों से
मामूर हैं गुलज़ार अब कि नहीं
बाज़ार में मालन लाती है
फूलों के गुँधे हार अब कि नहीं
और शौक़ से टूटे पड़ते हैं
नौ-उम्र ख़रीदार अब कि नहीं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शाम पड़े गलियों में वही
दिलचस्प अँधेरा होता है
और सड़कों की धुँदली शामों पर
सायों का बसेरा होता है
बाग़ों की घनेरी शाख़ों में
जिस तरह सवेरा होता है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ वैसी ही जवाँ
और मध-भरी रातें होती हैं
क्या रात भर अब भी गीतों की
और प्यार की बातें होती हैं
वो हुस्न के जादू चलते हैं
वो इश्क़ की घातें होती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
मीरानियों के आग़ोश में है
आबाद वो बाज़ार अब कि नहीं
तलवारें बग़ल में दाबे हुए
फिरते हैं तरहदार अब कि नहीं
और बहलियों में से झाँकते हैं
तुर्कान-ए-सियह-कार अब कि नहीं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी महकते मंदिर से
नाक़ूस की आवाज़ आती है
क्या अब भी मुक़द्दस मस्जिद पर
मस्ताना अज़ाँ थर्राती है
और शाम के रंगीं सायों पर
अज़्मत की झलक छा जाती है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाला बता
क्या अब भी वहाँ के पनघट पर
पनहारियाँ पानी भरती हैं
अंगड़ाई का नक़्शा बन बन कर
सब माथे पे गागर धरती हैं
और अपने घरों को जाते हुए
हँसती हुई चुहलें करती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
बरसात के मौसम अब भी वहाँ
वैसे ही सुहाने होते हैं
क्या अब भी वहाँ के बाग़ों में
झूले और गाने होते हैं
और दूर कहीं कुछ देखते ही
नौ-उम्र दीवाने होते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पहाड़ी चोटियों पर
बरसात के बादल छाते हैं
क्या अब भी हवा-ए-साहिल के
वो रस भरे झोंके आते हैं
और सब से ऊँची टीकरी पर
लोग अब भी तराने गाते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पहाड़ी घाटियों में
घनघोर घटाएँ गूँजती हैं
साहिल के घनेरे पेड़ों में
बरखा की हवाएँ गूँजती हैं
झींगुर के तराने जागते हैं
मोरों की सदाएँ गूँजती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ मेलों में वही
बरसात का जौबन होता है
फैले हुए बड़ की शाख़ों में
झूलों का नशेमन होता है
उमड़े हुए बादल होते हैं
छाया हुआ सावन होता है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ
दरिया-ए-हसीं लहराए हुए
जूँ गोद में अपने मन को लिए
नागिन हो कोई थर्राए हुए
या नूर की हँसुली हूर की गर्दन
में हो अयाँ बिल खाए हुए
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी फ़ज़ा के दामन में
बरखा के समय लहराते हैं
क्या अब भी कनार-ए-दरिया पर
तूफ़ान के झोंके आते हैं
क्या अब भी अँधेरी रातों में
मल्लाह तराने गाते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी वहाँ बरसात के दिन
बाग़ों में बहारें आती हैं
मासूम ओ हसीं दोशीज़ाएँ
बरखा के तराने गाती हैं
और तीतरियों की तरह से रंगीं
झूलों पर लहराती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी उफ़ुक़ के सीने पर
शादाब घटाएँ झूमती हैं
दरिया के किनारे बाग़ों में
मस्ताना हवाएँ झूमती हैं
और उन के नशीले झोंकों से
ख़ामोश फ़ज़ाएँ झूमती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या शाम को अब भी जाते हैं
अहबाब कनार-ए-दरिया पर
वो पेड़ घनेरे अब भी हैं
शादाब कनार-ए-दरिया पर
और प्यार से आ कर झाँकता है
महताब कनार-ए-दरिया पर
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या आम के ऊँचे पेड़ों पर
अब भी वो पपीहे बोलते हैं
शाख़ों के हरीरी पर्दों में
नग़्मों के ख़ज़ाने घोलते हैं
सावन के रसीले गीतों से
तालाब में अमरस घोलते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या पहली सी है मासूम अभी
वो मदरसे की शादाब फ़ज़ा
कुछ भूले हुए दिन गुज़रे हैं
जिस में वो मिसाल-ए-ख़्वाब फ़ज़ा
वो खेल वो हम-सिन वो मैदाँ
वो ख़्वाब-गह-ए-महताब फ़ज़ा
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी किसी के सीने में
बाक़ी है हमारी चाह बता
क्या याद हमें भी करता है
अब यारों में कोई आह बता
ओ देस से आने वाले बता
लिल्लाह बता लिल्लाह बता
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या हम को वतन के बाग़ों की
मस्ताना फ़ज़ाएँ भूल गईं
बरखा की बहारें भूल गईं
सावन की घटाएँ भूल गईं
दरिया के किनारे भूल गए
जंगल की हवाएँ भूल गईं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या गाँव में अब भी वैसी ही
मस्ती-भरी रातें आती हैं
देहात की कमसिन माह-वशें
तालाब की जानिब जाती हैं
और चाँद की सादा रौशनी में
रंगीन तराने गाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी गजर-दम चरवाहे
रेवड़ को चुराने जाते हैं
और शाम के धुँदले सायों के
हमराह घरों को आते हैं
और अपनी रसीली बांसुरियों
में इश्क़ के नग़्मे गाते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या गाँव पे अब भी सावन में
बरखा की बहारें छाती हैं
मासूम घरों से भोर-भैए
चक्की की सदाएँ आती हैं
और याद में अपने मैके की
बिछड़ी हुई सखियाँ गाती हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
दरिया का वो ख़्वाब-आलूदा सा घाट
और उस की फ़ज़ाएँ कैसी हैं
वो गाँव वो मंज़र वो तालाब
और उस की हवाएँ कैसी हैं
वो खेत वो जंगल वो चिड़ियाँ
और उन की सदाएँ कैसी है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी पुराने खंडरों पर
तारीख़ की इबरत तारी है
अन्नपूर्णा के उजड़े मंदिर पर
मायूसी-ओ-हसरत तारी है
सुनसान घरों पर छावनी के
वीरानी ओ रिक़्क़त तारी है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
आख़िर में ये हसरत है कि बता
वो ग़ारत-ए-ईमाँ कैसी है
बचपन में जो आफ़त ढाती थी
वो आफ़त-ए-दौराँ कैसी है
हम दोनों थे जिस के परवाने
वो शम-ए-शबिस्ताँ कैसी है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
मरजाना था जिस का नाम बता
वो ग़ुंचा-दहन किस हाल में है
जिस पर थे फ़िदा तिफ़्लान-ए-वतन
वो जान-ए-वतन किस हाल में है
वो सर्व-ए-चमन वो रश्क-ए-समन
वो सीम-बदन किस हाल में है
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी रुख़-ए-गुलरंग पे वो
जन्नत के नज़ारे रौशन है
क्या अब भी रसीली आँखों में
सावन के सितारे रौशन हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
क्या अब भी शहाबी आरिज़ पर
गेसू-ए-सियह बिल खाते हैं
या बहर-ए-शफ़क़ की मौजों पर
दो नाग पड़े लहराते हैं
और जिन की झलक से सावन की
रातों के सपने आते हैं
ओ देस से आने वाले बता

ओ देस से आने वाले बता
अब नाम-ए-ख़ुदा होगी वो जवाँ
मैके में है या ससुराल गई
दोशीज़ा है या आफ़त में उसे
कम-बख़्त जवानी डाल गई
घर पर ही रही या घर से गई
ख़ुश-हाल रही ख़ुश-हाल गई
ओ देस से आने वाले बता



AKHTAR SHIIRAANI.. GHAZAL.. AARZOO WAQT KII KARTI HAI PARESHAAN KYA KYA....

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या 
क्या बताऊँ कि मिरे दिल में हैं अरमाँ क्या क्या 

ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी 
देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या 

उन की ख़ुशबू है फ़ज़ाओं में परेशाँ हर सू 
नाज़ करती है हवा-ए-चमनिस्ताँ क्या क्या 

दश्त-ए-ग़ुर्बत में रुलाते हैं हमें याद आ कर 
ऐ वतन तेरे गुल ओ सुम्बुल ओ रैहाँ क्या क्या 

अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं 
महफ़िलें ख़्वाब की सूरत हुईं वीराँ क्या क्या 

है बहार-ए-गुल-ओ-लाला मिरे अश्कों की नुमूद 
मेरी आँखों ने खिलाए हैं गुलिस्ताँ क्या क्या 

है करम उन के सितम का कि करम भी है सितम 
शिकवे सुन सुन के वो होते हैं पशीमाँ क्या क्या 

गेसू बिखरे हैं मिरे दोश पे कैसे कैसे 
मेरी आँखों में हैं आबाद शबिस्ताँ क्या क्या 

वक़्त-ए-इमदाद है ऐ हिम्मत-ए-गुस्ताख़ी-ए-शौक़ 
शौक़-अंगेज़ हैं उन के लब-ए-ख़ंदाँ क्या क्या 

सैर-ए-गुल भी है हमें बाइस-ए-वहशत 'अख़्तर' 
उन की उल्फ़त में हुए चाक गरेबाँ क्या क्या 


AKHTAR SHIIRAANI.. GHAZAL.. TIRII MOHABBAT KI VAADIYON MEN MIRII JAVAANII SE DUUR KYA HAI......

तिरी मोहब्बत की वादियों में मिरी जवानी से दूर क्या है 

जो सादा पानी को इक नशीली नज़र में रंगीं शराब कर दे 

हरीम-ए-इशरत में सोने वाले शमीम-ए-गेसू की मस्तियों से 

मिरी जवानी की सादा रातों को अब तो सरशार ख़्वाब कर दे 

मज़े वो पाए हैं आरज़ू में कि दिल की ये आरज़ू है यारब 

तमाम दुनिया की आरज़ूएँ मिरे लिए इंतिख़ाब कर दे 

नज़र ना आने पे है ये हालत कि जंग है शैख़-ओ-बरहमन में 

ख़बर नहीं क्या से क्या हो दुनिया जो ख़ुद को वो बे-नक़ाब कर दे 

मिरे गुनाहों की शोरिशें इस लिए ज़ियादा रही हैं यारब 

कि इन की गुस्ताख़ियों से तू अपने अफ़्व को बे-हिसाब कर दे 

ख़ुदा न लाए वो दिन कि तेरी सुनहरी नींदों में फ़र्क़ आए 

मुझे तो यूँ अपने हिज्र में उम्र भर को बेज़ार-ए-ख़्वाब कर दे 

मैं जान-ओ-दिल से तसव्वुर-हुस्न-ए-दोस्त की मस्तियों के क़ुर्बां 

जो इक नज़र में किसी के बे-कैफ़ आँसुओं को शराब कर दे 

उरूस-ए-फ़ितरत का एक खोया हुआ तबस्सुम है जिस को 'अख़्तर' 

कहीं वो चाहे शराब कर दे कहीं वो चाहे शबाब कर दे

Saturday, 18 March 2023

AKHTAR SHIIRAANI.. GHAZAL.. AI DIL WOH AASHIQII KE FASAANE KIDHAR GAYE......

ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए 
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए 

Where have gone those love tales O heart? 
Where are those worlds, therein my life part? 

वीराँ हैं सहन- ओ - बाग़ बहारों को क्या हुआ 
वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए 

Deserted are garden' n lawn, what's spring plan? 
Where are nightingales  'n the tunes on their part? 

है नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआ 
लैलाएँ हैं ख़मोश दिवाने किधर गए 

Why's wind thid kind, why in dunes silence to find? 
Why lovers are silent, where are men O' fanatic heart? 

उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी 
सूने हैं कोहसार दिवाने किधर गए 

Deserted is the land, where are deers O friend? 
Hills are alone, where have gone fanatic heart? 

वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई 
वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए 

Where is meeting hope, in the  departure to cope?
Where are excuses of joy, for sad times to cart? 

दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी 
'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए

In tavern night 'n day, life was spent in a way. 
O' Akhtar! Where has gone that fanatic life part?  

Tuesday, 14 March 2023

ZAFAR IQBAL.. GHAZAL.. KHAMUSHI ACHCHHI NAHIN INKAAR HONAA CHAAHIYE...

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए 

ये तमाशा अब सर-ए-बाज़ार होना चाहिए 

ख़्वाब की ताबीर पर इसरार है जिन को अभी 

पहले उन को ख़्वाब से बेदार होना चाहिए 

डूब कर मरना भी उसलूब-ए-मोहब्बत हो तो हो 

वो जो दरिया है तो उस को पार होना चाहिए 

अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात 

जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए 

बात पूरी है अधूरी चाहिए ऐ जान-ए-जाँ 

काम आसाँ है इसे दुश्वार होना चाहिए 

दोस्ती के नाम पर कीजे न क्यूँकर दुश्मनी 

कुछ न कुछ आख़िर तरीक़-ए-कार होना चाहिए 

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र' 

आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए

Monday, 13 March 2023

SHAHARYAAR.... GHAZAL..... YEH KYAA JAGAH HAI DOSTO YE KAUN SAA DAYAAR HAI...


ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है 
हद-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है 

What's this place O friend? What a stretch without end? 
As far as  eyes  see, 
there's mist till the end. 

हर एक जिस्म रूह के अज़ाब से निढाल है 
हर एक आँख शबनमी हर एक दिल फ़िगार है

Each eye is dewy, each heart is shattered. 
 Under the tortures of soul,each body has to bend. 

हमें तो अपने दिल की धड़कनों पे भी यक़ीं नहीं 
ख़ोशा वो लोग जिन को दूसरों पे ए'तिबार है 

I don't even believe the beats 
of my heart. 
Those who can believe others, are strong-blend. 

न जिस का नाम है कोई न जिस की शक्ल है कोई 
इक ऐसी शय का क्यूँ हमें अज़ल से इंतिज़ार है

One who neither has a face nor name. 
Why am I waiting for it from eternal bend? 

Saturday, 11 March 2023

AHMAD NADEEM PARVAAZI.. GHAZAL.. ZARAA ZARAA SI KAII KASHTIYAAN BANAA LENAA.....

ज़रा ज़रा सी कई कश्तियाँ बना लेना 
वो अब के आए तो बचपन रफ़ू करा लेना 

तमाज़तों में मिरे ग़म के साए में चलना 
अंधेरा हो तो मिरा हौसला जला लेना 

शुरूअ में मैं भी इसे रौशनी समझता था 
ये ज़िंदगी है इसे हाथ मत लगा लेना 

मैं कोई फ़र्द नहीं हूँ कि बोझ बन जाऊँ 
इक इश्तिहार हूँ दीवार पर लगा लेना 

रफ़ाक़तों का तवाज़ुन अगर बिगड़ जाए 
ख़मोशियों के तआवुन से घर चला लेना

Wednesday, 8 March 2023

GHAZAL.. MIR TAQI MIR.. DEKH TO DIL KI JAAN SE UTHTAA HAI....

देख तो दिल कि जाँ से उठता है 
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है 

Look, if it comes from body or heart. 
This smoke exudes from which part? 

गोर किस दिलजले की है ये फ़लक 
शोला इक सुब्ह याँ से उठता है 

Grave of a heartburnt is this O sky! 
Each morn' a flame comes from the part. 

ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा 
कोई ऐसे मकाँ से उठता है 

Who leaves a house this way? 
Don't mercilessly quit the heart. 

नाला सर खींचता है जब मेरा 
शोर इक आसमाँ से उठता है 

A noise emerges from the sky. 
When my wail wades through  heart. 

लड़ती है उस की चश्म-ए-शोख़ जहाँ 
एक आशोब वाँ से उठता है 

A catastrophe rises from there. 
Where her lively eyes meet counterpart. 

बैठने कौन दे है फिर उस को 
जो तिरे आस्ताँ से उठता है 

Who will allow him to sit with ? 
One who leaves your lane part. 

यूँ उठे आह उस गली से हम 
जैसे कोई जहाँ से उठता है 

This way I have left her lane. 
As someone quits world mart. 

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है 
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

O'Mir'! Love is a stone, so heavy.
How can you lift it O feeble part? 

Monday, 6 March 2023

Your eyes are lovely and bright.. RAVI MAUN

Your eyes are lovely and bright.
Your skin is shiny and light. 
You are tall yet walk with grace. 
I wish you joy beyond sight. 

Wednesday, 1 March 2023

MIR TAQI MIR KE ASHAAR

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए 
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है 



मीर तक़ी मीर
 
 
  टैग्ज़: फ़ेमस शायरी और 1 अन्य
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम 
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये 



मीर तक़ी मीर
 
 
 
हमारे आगे तिरा जब किसू ने नाम लिया 
दिल-ए-सितम-ज़दा को हम ने थाम थाम लिया 



मीर तक़ी मीर
 
 
  
बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को 
देर से इंतिज़ार है अपना 



मीर तक़ी मीर
 
 
 टैग्ज़: इंतिज़ार और 1 अन्य
दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया 
हमें आप से भी जुदा कर चले 
 
 
  
हम जानते तो इश्क़ न करते किसू के साथ 
ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ 

I wouldn't have loved anyone, if I had known. 
Could have taken desire to dust with my own. 
 
गुफ़्तुगू रेख़्ते में हम से न कर 
ये हमारी ज़बान है प्यारे

Don't talk in Rekhta with me, dear! 
It's my language, my own sphere! 

ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत काम 
आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का 
 
 Breathe gently as it's a job, delicate . 
In this glassework of worlds 
O mate! 
  
किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक 
मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया 
 
 How sleepy you are, O eye in weeping state? 
Open your eyelash , the city is washed in spate. 
  
जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा 'मीर' ज़ि-बस 
उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते 

On murderer's collar so much was my blood. 
Yesterday, she washed it with tears in flood. 
 
कुछ हो रहेगा इश्क़-ओ-हवस में भी इम्तियाज़ 
आया है अब मिज़ाज तिरा इम्तिहान पर 

Some difference 'd 
 be there in love and lust. 
Now your mood is taken 
to test as a must. 

अब के जुनूँ में फ़ासला शायद न कुछ रहे 
दामन के चाक और गिरेबाँ के चाक में 

Probably no difference in this frenzy 'd be there. 
Every strip of hem and dress would I lay bare. 
 
मसाइब और थे पर दिल का जाना 
अजब इक सानेहा सा हो गया है 

Many troubles were there but losing heart. 
Has become catastrophic on  my part. 
 
बाल-ओ-पर भी गए बहार के साथ 
अब तवक़्क़ो नहीं रिहाई की 

I have also lost wings with spring. 
Now there's no hope to be out of ring. 
 
  
हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या 
आन बैठे जो तुम ने प्यार किया

Why avoid being coquettish with me. 
I have succumbed to love as
you see. 

आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामत 
अस्बाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का 

 Who has travelled safely in the path to goal? 
Each traveller has been robbed on way to goal. 

आलम आलम इश्क़-ओ-जुनूँ है दुनिया दुनिया तोहमत है 
दरिया दरिया रोता हूँ मैं सहरा सहरा वहशत है 
 
In this state of love 'n craze, world is simply a blame. 
I weep a stream of tears, desert is it's wild name. 

हम न कहते थे कि नक़्श उस का नहीं नक़्क़ाश सहल 
चाँद सारा लग गया तब नीम-रुख़ सूरत हुई 

O painter! I told you it won't 
be easy to trace. 
It took whole moon to paint half of her face. 
 
 
कहना था किसू से कुछ तकता था किसू का मुँह 
कल 'मीर' खड़ा था याँ सच है कि दिवाना था 

He had to say something but said it to someone. 
'Mir' was here yesterday and a fanatic, the true one. 
 
इज्ज़-ओ-नियाज़ अपना अपनी तरफ़ है सारा 
इस मुश्त-ए-ख़ाक को हम मसजूद जानते हैं

Modesty and prayer is towards our own. 
This fistful of dust is God of our own.