Thursday, 13 April 2023

एक कहानी कभी पढ़ी थी आज आ रही ध्यान........ ....... रवि मौन.....

एक कहानी कभी पढ़ी थी आज आ रही ध्यान ।
एक सेठ दानी था पर उस के न हुई संतान। 
अपनी पत्नी का तक तक कर मुख पाता था कष्ट। 
किन्तु उसे दुःख न हो इस से कभी न बोला स्पष्ट। 
पत्नी बोली एक दिन कर लो और विवाह। 
शायद वो दे पाए तुम को शिशु, जीवन की चाह। 
पति-पत्नी दोनों दूजे दिन शिशु-गृह पहुँचे आन। 
सुन्दर सा इक बालक देखा, अपनाया निज मान। 
बीच बीच में सेठ वहाँ आता, देता था दान। 
कभी न लाया शिशु को, कहीं न ले घर को पहचान। 
जन्म-दिवस पर उस बालक के, घर में होती धूम। 
कभी न उस बालक की आँखें शिशु-गृह पाई चूम। 
वृद्धाश्रम में भी आता था सेठ कुशल व्यवहार। 
देख सभी होते प्रसन्न, करते थे उस को प्यार । 
वृद्धाश्रम के मैनेजर को हरि ने लिया बुलाय। 
मालिक ने शिशु-गृह चालक को यह भी दिया थमाय। 
पत्नी मर गई सेठ की, दोनों में था प्यार। 
लड़का हुआ जवान तो संभलाया व्यापार। 
उस का किया विवाह, भ्रमण, तीर्थाटन पर दे ध्यान। 
सुधर सके अगला जीवन, हरि का मानूँअहसान। 
बेटे को लगने लगा धन करते पितु नष्ट। 
वृद्धाश्रम पहुँचा दूँ इनको, घर में पाते कष्ट। 
वहाँ मिलें हम-उम्र सब, जाएँगे दिन बीत। 
दान प्रचुर मात्रा में दूँगा, पा जाएँगे प्रीत। 
मैनेजर ने देख सेठ को झटपट किया प्रणाम। 
आप जानते हैं इन को, लो क़िस्सा हुआ तमाम। 
 मुख के तिल से मैनेजर ने उसे लिया पहचान। 
हाँ मैं इन्हें जानता हूँ पर तुझे नहीं है ज्ञान। 
मेरे शिशु-गृह से ये तुम को ले आए थे गोद। 
प्रमुदित होते थे, तेरी बातें कर बहुत विनोद। 
जिसने तुम को दिया सभी कुछ, उसे रहे तुम छोड़। 
पैरों में आ गिरा पिता के, युवक सभी भ्रम तोड़। 
धन्यवाद कर मैनेजर का, पितु को घर ले आया। 
इस के बाद पिता को उसने श्रद्धा से अपनाया । 






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