हरि ने चक्र सुदर्शन से ही व्यर्थ किया वह वार।।
पाण्डव बचे देख कर क्रोधित हुआ बहुत गुरुपुत्र।
चला उत्तरा गर्भ पर, मरे अभिमन्यु का पुत्र।।
सूक्ष्म रूप धर हरि ने रोका ब्रह्म अस्त्र का तेज।
जन्म परीक्षित का हुआ, हरि ने रखा सहेज।।
शाप दिया अश्वत्थामा को, मृत्यु रहेगी दूर।
तरसोगे मरने को, कष्ट मिलें तुम को भरपूर।।
तुम ने तो यह चाहा दूँ गर्भस्थ जीव को मार।
किसी भाँति भी यह नहीं वीरोचित व्यवहार।।
भ्रूणनष्ट हो इसे न प्रभु ने कहा उचित व्यवहार।
क्या होगा उन का जो इन को रहे निरन्तर मार?
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