देखी ममता भक्त की कृष्ण हुए अनुरक्त
दुष्ट सभा में खींचता रहा द्रोपदी वस्त्र
साड़ी हुई अनंत तब चला कृष्ण का अस्त्र
भक्त के वश में हैं भगवान.....
दुर्योधन ने दुर्वासा का किया बहुत सत्कार।
मुनि को जान प्रसन्न, की उनसे एक गुहार।
भैया मेरे, वन में रहते हैं पत्नी के साथ।
जाएँ वहाँ मध्याह्न में, भोजन में दें साथ।
पत्ता खाया कृष्ण ने, ले ली एक डकार।
इस से ही हो तृप्त अब, यह सारा संसार।
दुर्वासा शिष्यों सहित, भागे वन की ओर।
कृष्ण कृपा से द्रोपदी हो गई आत्म- विभोर।
यूँ रखा हरि ने उसका मान।
भक्त के वश में हैं भगवान।।
क्रोध नष्ट कर गया ज्ञान को अनुनय विनय न मानी।
पृथ्वी पर तुम जियो मरोगे, वध करने की ठानी।
अम्बरीष साकेत जाएँगे, मुनि का है जो शाप।
उसे ग्रहण कर, लूँगा मैं दस जन्म धरा पर आप।
चक्र सुदर्शन पीछे-पीछे दुर्वासा जी आगे। कहीं शरण जब मिल न सकी तो मानो ऋषिवर जागे।
भक्त कर देगा अभय प्रदान।
भक्त के वश में हैं भगवान।।
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